जनार्दन गोंड बता रहे हैं गोंड परंपरा के लोकगीतों और पारंपरिक लोक कलाओं के बारे में कि कैसे इनमें छेड़छाड़ कर हिंदू धर्म की परंपराओं से जोड़ा जा रहा है। उनके मुताबिक आज जो पांडवानी गाई जाती है, वह असल में गोंडवानी है
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श्रीलाल शुक्ल सम्मान-2020 से सम्मानित साहित्यकार और झारखंड के वरिष्ठ नौकरशाह रणेंद्र के मुताबिक, बॉक्साइट माइंस अगर असुरों के लिए खतरा बनी हुई हैं तो रियल एस्टेट का धंधा मुंडा आदिवासियों को तबाह कर रहा है। आदिवासी जमीनों के लिए आदिवासियों को गायब किया जा रहा है। उनकी जमीन पर कंक्रीट के जंगल खड़े किये जा रहे हैं
गोंड विचारक डा. सूर्या बाली के मुताबिक बात दो सौ रुपए की नहीं है। असल में गोंड समुदाय के लोग अब अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं को लेकर जागरूक हो चले हैं। उन्होंने उन पर थोपी जा रही परंपराओं का विरोध शुरू दिया है
दीपावली श्रमण परंपरा का उत्सव है जो छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, बिहार व उत्तर प्रदेश सहित देश के एक बड़े हिस्से में मनाया जाता है। लेकिन इसे ब्राह्मण परंपरा में रंग दिया गया है। बता रहे हैं संजीव खुदशाह
जनगणना प्रपत्र में आदिवासी धर्म के पृथक कोड को लेकर चल रहे आंदोलन को एक नया मुकाम हासिल हुआ है। झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार की पहल पर विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया है। इस प्रस्ताव का आशय यही है कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं। उनका अपना धर्म और अपनी पहचान है। विशद कुमार की खबर
सामाजिक कार्यकर्ता वंदना टेटे के मुताबिक, जहां तक आदिवासी समाज में डायन के नाम पर की जा रहीं हत्याओं का मामला है उसके कारणों में आदिवासी समाज के भीतर बाहरी तत्वों की घुसपैठ है। इस तरह की घटनाओं में वृद्धि हुई है। आदिवासी समाज कभी एक समूह हुआ करता था अब वह व्यक्तिगत होता जा रहा है। विशद कुमार की खबर
अपने बुनियादी मूल्यों के खिलाफ जाकर आदिवासी समाज अन्य जाति, धर्म या बिरादरी में विवाह करने वाली अपनी महिलाओं के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने लगा है। इस प्रवृत्ति के पीछे कौन है? क्या हैं इसके कारण? नीतिशा खलखो इन सवालों को उठा रही हैं
Going against its core values, the Adivasi community is behaving cruelly with its women who marry non-Adivasis. Who or what is behind this trend and why is this happening? Nitisha Xalxo analyses
28 सितंबर, 2017 को लोकेश सोरी ने छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे भारत में इतिहास रचा था। वे मानते थे कि बहुजनों के अपने सांस्कृतिक अधिकार हैं। उन्होंने महिषासुर और रावण वध करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उनकी पहली पुण्यतिथि पर लोगों ने उनके आंदोलन को जारी रखने का संकल्प लिया
गत 28 सितंबर, 2017 को लोकेश सोरी ने छत्तीसगढ़ के कांकेर में द्विजवादियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था कि वे उनके पुरखों रावण और महिषासुर का अपमान कर रहे हैं। आगामी 11 जुलाई को लोकेश सोरी की पहली पुण्यतिथि पर बिलासपुर में एक परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है
हुल दिवस के मौके पर पढ़ें सुरेश जगन्नाथम का विशेष लेख। इसमें वह बता रहे हैं नियमगिरि पहाड़ियों में रहने वाले डोंगरिया कोंद व कुटिया कोंद समुदाय के लोगों द्वारा चलाए जा रहे आदोलन में उपयोग किए जाने वाले लोकगीतों के बारे में। उनके मुताबिक, यह वही परंपरा है जिसकी मुखर अभिव्यक्ति संथाल हुल से लेकर उलगुलान तक में होती है