नहीं बदलना यानी जड़ बने रहना कोई अच्छी चीज नहीं है। प्रेमचंद के समय से लेकर अब तक एक लंबा समय बीत चुका है और इतने समय में समाज को बदल जाना चाहिए था। मसलन, इतने सालों में दलितों का मंदिर प्रवेश का मुद्दा खत्म हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ
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