सार्वजनिक क्षेत्र किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं। वे देश की आधारभूत संरचना को मजबूत करने के काम आते हैं। लेकिन भारत सरकार इनके निजीकरण और विनिवेश को बढ़ावा दे रही है। दलित-बहुजनों के हितों के आलोक में इसके कारण बता रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप
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बीते 8 नवंबर को नोटबंदी के दो साल पूरे हो गए। इस दौरान क्या खोया, क्या पाया? इसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने दावे हैं। दावों से इतर बदले हालात पर फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics