अपनी मातृभाषा मैथिली में वे कुछ और थे, हिंदी में कुछ और व्यक्तिगत जिन्दगी में कुछ और। अपने अंतिम काल में लगभग आठ-दस साल वे दरभंगा में रहे। इस दौरान मैंने उन्हें जाना-समझा। रेणु और नागार्जुन दोनों में मित्रता जैसी थी। रेणु उनको बड़ा भाई मानते थे, मगर रेणु को लेकर मुझे लगता है उनमें एक विचित्र किस्म की कुंठा थी। पढ़ें, रामधारी सिंह दिवाकर से युवा समालोचक अरुण नारायण की बातचीत की तीसरी किश्त