सबसे गंभीर प्रभावितों को भोजन उपलब्ध करवाने वाले केंद्रों में शरण लेनी पड़ी, जहां वे औपनिवेशिक प्रशासन और परोपकारी संस्थारओं की मदद से जिंदा भर रह सके। उनमें से कुछ को तो उनकी जाति से बाहर कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने अन्य जातियों के लोगों के साथ भोजन किया था। बिद्युत मोहंती की पुस्तक ‘ए होन्टिंग ट्रेजेडी’ की ज्यां द्रेज द्वारा समीक्षा