महिलाओं की मुक्ति की दिशा में जोतिबा का पहला कदम था अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पढऩा-लिखना सिखाना। जब वे इस संघर्ष को अपने घर से बाहर ले गए तब उन्हें यह अहसास हुआ कि ”महिलाओं को शिक्षा देना, उनकी मेधा को जगाना, उन्हें वह सम्मान देना जिसकी वो अधिकारी हैं …, हिंदुओं की धार्मिक आस्थाओं के विरूद्ध है…।’’