जर्नादन गोंड बता रहे हैं आदिवासियों के प्रकृति पर्व सरहुल के बारे में। उनके मुताबिक इस पर्व के बारे में गैर आदिवासी साहित्यकारों ने भी लिखा है। लेकिन उनके लेखन का अपना नजरिया है। जबकि आदिवासी साहित्यकारों ने इसके मूल स्वरूप का वर्णन किया है
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भारत में होली का मूल स्वरुप और वैज्ञानिक अवधारणा शायद ही कोई जानता हो। सूर्या बाली बता रहे हैं कि यह कोइतुरों का शिमगा सग्गुम पर्व हैं, जो वास्तव में हिंदुओं का नहीं बल्कि कोइतूरो का शुद्ध कृषि प्रधान त्यौहार है, जिसके पीछे एक विज्ञान भी है
देश भर से दलित-आदिवासी, महिला, घुमंतू आदिवासी समुदाय, अल्पसंख्यक व कई अन्य वंचित समुदायों से करीब 15 भाषाओं के लेखक, संस्कृतिकर्मी, गायक, नाट्यकार, कलाकार हो रहे हैं शामिल