लेखक हेसूस याचरेज बता रहे हैं कि आखिर आंबेडकर को हमेशा केवल संविधान के साथ ही क्यों दिखाया जाता है। उनके हाथों में कभी ‘जाति का विनाश’ या ‘बुद्ध और उनका धम्म’ क्यों नहीं होती?
It is strange that Ambedkar is depicted holding the Constitution and not, for instance, ‘Annihilation of Caste’ or ‘The Buddha and his Dhamma’
वी. गीता इस लेख में पेरियार की विचार-यात्रा एवं संघर्ष के केंद्रीय बिन्दुओं को रेखांकित करते हुए यह बता रही हैं कि क्यों पेरियार की नजर में जाति के पूरी तरह से विनाश के लिए इसे पोषित करने वाले ईश्वर, शास्त्रों और ब्राह्मणवाद का विनाश जरूरी है? क्यों मानव मुक्ति के लिए पितृसत्ता और अंधराष्ट्रवाद से भी मुक्ति मिलनी भी जरूरी है
V. Geetha writes that Periyar held that annihilation of caste would necessitate ‘the abolition of God, Religion, Shastras and Brahmins’. He also attacked patriarchy and ‘Brahmin nationalism’ in pursuit of true human freedom
इस आलेख में ओमप्रकाश कश्यप पेरियार को देशज आधुनिकता के प्रवर्तक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। जिनका मानना था कि वर्ण-जाति के विनाश के बिना भारत को एक आधुनिक राष्ट्र नहीं बनाया जा सकता है
–
प्रेमचंद आधुनिक हिंदी के पहले लेखक थे जिन्होंने स्पष्टतया ब्राह्मणवादी पाखंड को बार-बार अपनी रचनाओं में चिन्हित करने की कोशिश की है। हिन्दुओं की वर्ण-व्यवस्था पर प्रश्न उठाने का साहस उनके समय के किसी अन्य हिंदी लेखक ने नहीं किया था। उन्होंने यह किया। आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रेमचंद की विशिष्टता को रेखांकित कर रहे हैं, प्रेमकुमार मणि
गांधी से जुड़ा इतिहास क्या वही इतिहास है जिसे आज परोसा जा रहा है? कार्टून बताते हैं कि गांधी केवल झाड़ू, आश्रम, गोल चश्मे और फकीरी तक सीमित नहीं थे
छात्रों का विरोघ देखते हुए घाना विश्वविद्यालय में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा हटा दी गई है। छात्रों का विरोध इस बात को लेकर है कि गांधी का अफ्रीकियों के प्रति विचार अच्छा नहीं था, वह उन्हें नीच समझते थे
लेखक प्रेमकुमार मणि ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि गांधी का शुरुआती दौर में जो महत्व था, उसके सामने आंबेडकर कहीं नहीं टिकते थे। लेकिन स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा जैसे आधुनिक उसूलों के लिए आंबेडकर ने जो कार्य किए, उसके सामने गांधी बौने दिखते हैं। कुमार समीर की समीक्षा :
हिन्दू जाति-समस्या धार्मिक धारणाओं पर टिकी हुई है। अतः बिना इन धारणाओं को अर्थात् बिना इन धर्मशास्त्रों को नष्ट किए जाति का विनाश असम्भव है। चूंकि तथाकथित हिन्दू सुधारवादी इन धर्मग्रन्थों को भी रखना चाहते हैं तथा सामाजिक सुधार भी करना चाहते हैं इसलिए हिन्दू धर्म में समाज सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बचती है। बी. आर. विप्लवी की समीक्षा :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics