तब अण्णा भाऊ ने कहा था– “दलितों की शक्ति के आधार पर ही यह दुनिया चलती है। उनकी मेहनत और यश प्राप्ति पर मेरा विश्वास है। उन्हें असफल बनाना मुझे पसंद नहीं है। ऐसा करने में मुझे डर लगता है। यह धरती शेषनाग के फन पर टिकी हुई नहीं है, बल्कि दलितों ने इसे अपनी हथेली पर झेल रखा है।” पढ़ें, प्रो. गंगाधर पानतावणे के संस्मरण का पहला भाग