जिस समयावधि में कृष्णा सोबती यह उपन्यास लिख रही थीं, वह विभाजन और स्वतंत्र भारत का वह समय था जब लोगों में तरह तरह की कुंठाएं और नफ़रतें थीं। ऐसे परिवेश में लेखिका का सामना ऐसी अनेक घटनाओं से हुआ होगा, जिसमें केवल अमीर और सभ्रांत घरानों की ही नहीं, बल्कि गरीब, मजदूर और दलित, उपेक्षित जाति और वर्ग की बच्चियां/ बेटियां भी रही होंगी। लेकिन वे कृष्णा सोबती की कहानियों की पात्र नहीं थीं। पढ़ें, डॉ. पूनम तुषामड़ का यह आलेख