अज्ञेय के शब्दों में “स्वाधीनता कोई स्थिर अथवा स्थावर वस्तु नहीं है, ऐसी सम्पत्ति या ऐसा रत्न नहीं है, जिसे कोई एक बार प्राप्त कर के कहीं संजो कर रख सकता है। इसके विपरीत, स्वाधीनता एक ऐसी चीज है जो निरन्तर आविष्कार, शोध और संघर्ष मांगती है, यहां तक कि उस शोध और संघर्ष को ही, स्वाधीनता की अन्तहीन ललक को ही, स्वाधीनता का सारसत्व कह सकते हैं”