भारतीय राजनीति में यह देखा गया है कि जब दलित, पिछड़े, आदिवासी बहुजन अपनी पहचान को स्थापित कर साधन-संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी की तरफ बढ़ने लगते हैं, तब सवर्ण-अशराफ हिन्दू-मुस्लिम राजनीति की आंच तेज़ करने लगते हैं। बता रहे हैं डॉ. अयाज अहमद
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