बिहार के सामाजिक व राजनीतिक परिवेश में यह नए बदलाव का परिचायक भी है कि जो शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण का विरोध करते थे, इसे जातिगत राजनीति की उपमा देते थे, वे अब स्वयं ही अपने-अपने जातिगत दरबे में समाते जा रहे हैं। नवल किशोर कुमार की खबर