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सरकार की पूंजीवादी प्रवृत्तियों के कारण देश आज भारी आर्थिक संकट में फंस गया है तथा श्रीलंका जैसे बड़े आर्थिक-सामाजिक संकटों में फंसने की पूरी संभावना सामने दिख रही है। भूमंडलीकरण में निहित नई आर्थिक नीतियों के कारण भारी पैमाने पर बेरोजगारी फैल रही है। भयानक आर्थिक संकट से निज़ात पाने के लिए सरकार इस नई नीति के बहाने सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली सेना में भारी कटौती करने जा रही है। बता रहे हैं स्वदेश कुमार सिन्हा
अग्निवीर के दिमाग में एक चिंता हमेशा रहेगी कि अगर चार साल के दौरान उसमें कोई अस्थायी अपंगता आई और वह मेडिकल जांच पास नहीं कर पाया या आवेदन के ठीक पहले किसी कारणवश उसका अंग भंग हो गया तो उसके 15 साल के लिए सैनिक बनकर एक सैनिक तरह सारे अधिकार पाने और देश की सेवा करने के रास्ते हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। इन सब चिंताओं के बीच वह देश की सीमाओं की रक्षा कैसे करेगा? पढ़ें, अनुराग मोदी का यह तथ्यपरक विश्लेषण
अगस्त 2017 में भारत सरकार ने सेना के पुनर्गठन और काम करने के तौर तरीक़ों में बदलाव का ऐलान किया। इसके बाद तत्कालीन सेना सचिव जे.एस. संधु के नेतृत्व में एक 11 सदस्यीय पैनल ने सरकार से कहा कि अगले चार साल में सैन्य संख्या में कम से कम 1.5 लाख की कटौती की जाए। बता रहे हैं सैयद ज़ैगम मुर्तजा
सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि एक फौजी को जंग के लिए तैयार करने में चार से पांच साल लगते हैं। ‘अग्निपथ’ योजना में केवल छह महीने के प्रशिक्षण का ही प्रावधान है। इस तरह कम अनुभव वाला फौजी सेना के आधुनिकीकरण में कैसे मददगार होगा? सवाल उठा रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप
Even as the government celebrates Azadi Ka Amrit Mahosatva, our youth are torching national assets. This is wrong. But we should also ponder as to why such a situation has arisen, writes retired CRPF commandant Hawa Singh Sangwan
आजादी के 75 साल बाद जब एक तरफ हुकूमत अमृत महोत्सव मना रही है, हमारे युवा राष्ट्र की संपत्ति जला रहे हैं। यह गलत है और नौजवानों को ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन ऐसे में हमें सोचना ही चाहिए कि ऐसे हालात क्यों बने हैं? बता रहे हैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के सेवानिवृत्त कमांडेंट हवा सिंह सांगवान
फायरिंग की आवाज सुनकर घटनास्थल पर पहुंचने वाले ग्रामीणों और चश्मदीदों का दावा है कि सेना के जवानों ने मजदूरों को मारने के बाद उनके कपड़ों को बदलने की कोशिश की थी। फायरिंग में मारे गए मजदूर शोमवांग की बहन ने भी कहा है कि जब वो वहां पहुंची तो उन्होंने शोमवांग की लाश को अर्धनग्न अवस्था में पाया था। बता रहे हैं अश्विनी कुमार पंकज
श्मशान घाट के पास रहनेवाली एक नौ साल की दलित मासूम बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसकी लाश को ठिकाने लगाने का मामला प्रकाश में आया है। मृतका के परिजनों के बयान को आधार मानें तो पूरे मामले में पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है। उसने इस मामले की प्राथमिकी दर्ज करने में भी आनाकानी की। फारवर्ड प्रेस की खबर
A person who reads one newspaper will consider what is written there as the gospel truth. There will be as many “truths” as the number of newspapers one reads. The same is true of the TV audience
जो पाठक एक अखबार पढ़ता है, वह उसी अखबार में छपी बातों को सच मान लेता है। कोई व्यक्ति जितने अखबार पढ़ेगा, उसे उतने ही “सच” पता चलेंगें। यही बात चैनलों के बारे में भी सही है