वामपंथी पार्टियां आज तक यह स्वीकार नहीं कर सकी हैं कि भारत में अगर कोई क्रांति होगी, तो जाति अनिवार्यतः उसका केन्द्रीय तत्व होगी। दूसरी ओर, दलित आंदोलन, मेहनतकश वर्ग के मुद्दों को नज़रअंदाज़ करता आ रहा है। वह इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है कि जाति व्यवस्था, दरअसल, श्रम विभाजन (या श्रमिकों का विभाजन) है