दलित साहित्य आत्ममर्यादा और स्वाभिमान का साहित्य है – उनका साहित्य जिन्हें सदियों तक दबाया गया, वंचित रखा गया। इस घृणित उपेक्षा का जब हम उल्लेख करते हैं तो वहां प्रेम नहीं, आक्रोश ही सामने आएगा। कह सकते हैं कि यह आक्रोश दलित साहित्य में एक शिल्प की तरह है। बांग्ला दलित कवयित्री कल्याणी ठाकुर ‘चाड़ाल’ से कार्तिक चौधरी की विशेष बातचीत