शूद्र, ओबीसी, दलितों और आदिवासियों के इतिहास, संस्कृति और जीवित अनुभवों के बारे में जानने के लिए कोई पूर्व लिखित ग्रंथों पर निर्भर नहीं हो सकता। वेद, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य तथा कौटिल्य और मनु का लेखन इन लोगों के ज्ञान को प्रतिबिंबित नहीं करता है। बता रहे हैं कांचा आयलैया शेफर्ड :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
बहुजन चिंतक कांचा आयलैया शेफर्ड मानते हैं कि यदि जाति व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए, तो आरक्षण की आवश्यकता केवल 30 वर्षों तक होगी। फिर समाज में बराबरी सुनिश्चित हो जाएगी। फारवर्ड प्रेस से विशेष बातचीत का संपादित अंश
दिल्ली विश्वविद्यालय के काेर्स से कांचा आयलैया की किताबें हटाने का विश्वविद्यालय स्टैंडिंग कमेटी का फैसला रद्द हाे सकता है। क्याेंकि संबंधित विभाग ने किताबें हटाने से इनकार कर दिया है। फिलहाल इसके लिए स्टैंडिंग कमेटी की इसी महीने यानी नवंबर में बैठक हाेगी, जिसका सबकाे बेसब्री से इंतजार है। फारवर्ड प्रेस की रिपाेर्ट :