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यह कांशीराम के सतत आंदोलन का ही परिणाम था कि दलित, आदिवासी, पिछड़े और मुसलमान अपने हक-हुकूक के लिए जागरूक हुए। जब यह आंदोलन चल रहा था तब लोगों का नारा था – ‘कांशी तेरी नेक कमाई, तूने सोती कौम जगाई।’
कांशीराम का जीवन स्वयं में एक आंदोलन है। एक ऐसा आंदोलन जिसने उत्तर भारत के बहुजनों की सोच को नया आयाम दिया। उन्हें ताकत दी और बताया कि 85 फीसदी बहुजन कैसे इस देश के संसाधनों पर अपना अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। उनके जीवन और योगदान के बारे में बता रहे हैं अलख निरंजन
एच. एल. दुसाध बता रहे हैं कांशीराम के सपने और उनके संघर्ष के बारे में। उनके मुताबिक यदि आज कांशीराम होते तो बहुजनों को धन-धरती का मालिक बनाने के अपने सपने को पूरा कर रहे होते
इस काल्पनिक पत्र के माध्यम से सिद्धार्थ बता रहे हैं कि कांशीराम के अनुसार राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना अपने आप में कोई लक्ष्य है ही नहीं। यह तो सिर्फ एक उपकरण है मनुवादियों के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सत्ता को उखाड़ फेंकने का और बहुजनों की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुक्ति का रास्ता प्रशस्त करने का
बसपा के पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद के मुताबिक, कांशीराम ने दलितों और ओबीसी के बीच एक विश्वास कायम किया था। उस विश्वास को मायावती तोड़ रही हैं
Kanshi Ram believed that by forcing Ambedkar to sign the Poona Pact on 24 September 1932, Gandhi pushed the Untouchables into the ‘Chamcha Yug’ (The era of stooges). Kanshi Ram’s only book, Chamcha Yug, dwells on the nature and the form of the post-Poona-Pact Dalit politics. Alakh Niranjan throws light on the significance of this book
कांशीराम का मानना था कि 24 सितंबर 1932 को गांधी ने आंबेडकर को पूना पैक्ट के लिए बाध्य करके अनुसूचित जातियों की राजनीति को चमचा युग में ढकेल दिया। कांशीराम की एकमात्र किताब चमचा युग पूना पैक्ट के बाद की दलित राजनीति के चरित्र को सामने लाती है। इस किताब की महत्ता पर रोशनी डाल रहे हैं, अलख निरंजन :
The State’s focus on Dalits may have created the rift between the two potential social allies against Brahmanism. But political parties espousing social justice have failed in addressing the question of development among the backward and Dalit castes. This has left most of these castes desperately looking for growth opportunities, and the right wing has smelt opportunity to draw these castes to itself
राज्य का फोकस दलितों पर रहने के कारण भी ब्राह्मणवाद के विरूद्ध लड़ाई में दलित और ओबीसी एक साथ नहीं आ सके। कुछ लोग कहते हैं कि यह ‘‘ब्राह्मणवादी’’ राज्य का खेल है। ओबीसी का एक अलग नेतृत्व उभर गया है। मंजूर अली का विश्लेषण
A bare reading of the collection of his speeches is enough to see why Kanshiram, during the initial days of his movement, laid equal stress on collecting resources, motivating people, sharpening organisational skills and developing Bahujan media
भाषणों के संकलन के अध्ययन के दौरान यह महसूस किया जा सकता है कि कांशी-राम अपने शुरू के दिनों में आंदोलन के तरीके विकसित करने, संसाधन जुटाने, लोगों को प्रेरित करने और बहुजन मीडिया की जरूरत को एक साथ, बार-बार क्यों उठाते हैं।
In modern India, our nation-builders created a humanistic system of reservations to ensure that the deprived majority gets its due in the power structure
शक्तिसंपन्न तबकों ने धीरे-धीरे दलित, आदिवासियों को मिले आरक्षण को झेलने की तो मानसिकता विकसित कर ली, किन्तु जब मंडल की सिफारिशों पर 1990 में पिछड़ों को आरक्षण मिला तो शक्तिसंपन्न तबके के युवाओं ने आत्मदाह से लेकर राष्ट्रीय संपत्ति की दाह तक का सिलसिला शुरू कर दिया। बता रहे हैं एच. एल. दुसाध
दलित साहित्य के द्वारा समाज की कड़वी सच्चाई समाज के सामने उभरकर आई है। खासतौर से दलित आत्मकथाओं के द्वारा। समाज में जो कुछ हुआ उसका लेखा-जोखा दलित साहित्य के रूप में प्रकाशित हुआ। जो गैर-दलित साहित्य की तरह कोरी कल्पनामात्र नहीं है, बल्कि नंगा यथार्थ है। तुलसीराम से विशेष साक्षात्कार