कर्पूरी ठाकुर की खासियत यह थी कि वे समाज की बीमारी समझते थे। वे जानते थे कि पिछड़ा, दलित, शोषित, वंचित एवं महिलाओं में शिक्षा का प्रचार-प्रसार किए बगैर विकसित समाज और उन्नत राष्ट्र के निर्माण का सपना कभी पूरा नहीं हो सकता। उन्हें याद कर रहे हैं सत्यनारायण प्रसाद यादव
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वर्तमान में पिछड़ा वर्ग को जो हक-अधिकार प्राप्त हुए हैं, उसके लिए इस वर्ग को लंबा संघर्ष करना पड़ा है। इसी संघर्ष के नायकों को किताब में याद किया गया है। इनमें जोतीराव फुले से लेकर एम. करुणानिधि तक शामिल हैं। नवल किशोर कुमार की समीक्षा
डाॅ. लोहिया के कर्मठ अनुयायी रहे राम अवधेश सिंह कर्पूरी ठाकुर के मजबूत हमराही बनकर मुंगेरीलाल आयोग की अनुशंसाओं के अनुरूप पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण को लागू कराने का मार्ग प्रशस्त किया। वहीं 1977 ई. में जनता पार्टी की सरकार के समक्ष उन्होंने संसद में कालेलकर आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग रखी। बता रहे हैं सत्यनारायण यादव
Ram Avdesh Singh was a politician committed to social justice. He spoke for social justice in the legislature and fought for social justice on the streets. He was instrumental in getting the Bihar and central governments to implement reservations for OBCs
उत्तर भारत में ओबीसी के लिए आरक्षण का सबसे पहला प्रावधान कर्पूरी ठाकुर ने किया था। इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी भी गंवानी पड़ी। इतना ही नहीं, उन्हें व्यक्तिगत तौर पर भद्दी-भद्दी गालिया दी गईं। लेकिन उनके इस निर्णय ने ओबीसी के लिए आरक्षण के प्रश्न को निर्णायक राजनीतिक प्रश्न बना दिया
जननायक कर्पूरी ठाकुर अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं। उन्हें बिहार में पिछड़ों के लिए आरक्षण के लिए भी याद किया जाता है। परंतु क्या आप जानते हैं कि जिस दिन वे पहली बार बिहार के सीएम बने, उसी दिन उनके गांव के एक सामंत ने उनके पिता को छड़ी से पीटा था? बता रहे हैं नवल किशोर कुमार
बीते 10 नवंबर 2018 को मुंगेरीलाल आयोग की अनुशंसायें लागू किये जाने की 40वीं वर्षगांठ के मौके पर एक गोष्ठी का आयोजन पटना में किया गया। इस मौके पर वक्ताओं ने अति पिछड़ा वर्ग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
सत्ता केन्द्रों में गैर-आनुपातिक प्रतिनिधित्व की समस्या का निराकरण केंद्रीय ओबीसी सूची का विभाजन कर नहीं किया जा सकता। यदि केंद्र की सूची में विभाजन किया जाता है किन्तु राज्यों में नहीं किया जाता है तो इससे हालात जस के तस रहेगें
The problem of disproportionate representation in positions of power can’t be resolved by dividing the central OBC list. No purpose will be served if the Centre draws up a separate list of EBCs but the states do not do so