वाकई यह दु:ख की बात है कि ऐसी दुर्लभ फुले-आंबेडकरवादी फेमिनिस्ट जिसने ‘सवर्णिकृत’ भारतीय स्त्री विमर्श में जाति की बात उठाई अब हमारे बीच नहीं हैं। जो श्रद्धांजलि मैंने इस अंक में इकठ्ठा की है, इस क्रांतिज्योति को मेरी व्यक्तिगत श्रद्धांजलि है, जो समय से पहले ही बुझ गईं