आस्थावादी कहता है, जो कहा गया है, उसपर विश्वास करो। धर्मग्रंथों पर संदेह करना पाप है। आस्था जितनी ज्यादा संदेह-मुक्त हो, उतनी ही पवित्र मानी जाती है। जबकि ज्ञान की खोज बगैर संदेहाकुलता के संभव ही नहीं है। ओमप्रकाश कश्यप का विश्लेषण
–
लेखक कंवल भारती बता रहे हैं हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित मिथकों के संदर्भ में डॉ. आंबेडकर के अध्ययन के बारे में। अपने अध्ययन में डॉ. आंबेडकर गीता को बुद्ध द्वारा जाति उन्मूलन के प्रयास के विरोध में रचित पाते हैं। साथ ही वे राम-कृष्ण के चरित्र के बारे में कहते हैं कि ये दोनों कोई आदर्श पुरूष नहीं थे और न ही ये देवता थे
Kanwal Bharti reviews Ambedkar’s studies of myths that are even today passed off as Ancient Indian History. Ambedkar discovered that the ‘Gita’ was written to nullify the Buddha’s anti-caste movement and that the characters of Ram and Krishna aren’t role models, much less gods
मानव सभ्यता के इतिहास का पुनर्पाठ करते हुए प्रेमकुमार मणि बता रहे हैं कि वैदिक काल के दौरान आर्यों-हिन्दुओं के अलावा आर्यों के विभिन्न समूहों के बीच भी सामाजिक और सांस्कृतिक दोनों तरह के संघर्ष हुए। इन संघर्षों के कारण जहां एक ओर आर्य और हिन्दू दोनों के बीच समन्वय की स्थिति बनी तो दूसरी ओर वर्ण व्यवस्था ने भी जन्म लिया
पेरियार रामायण को धार्मिक किताब नहीं मानते थे। उनका कहना था कि यह एक राजनीतिक पुस्तक है; जिसे ब्राह्मणों ने दक्षिणवासी अनार्यों पर उत्तर के आर्यों की विजय और प्रभुत्व को जायज ठहराने के लिए लिखा। यह गैर-ब्राह्मणों पर ब्राह्मणों और महिलाओं पर पुरुषों के वर्चस्व का भी उपकरण है। प्रस्तुत है पेरियार की सच्ची रामायण