वर्ष 1926 में स्वामी अछूतानंद ‘हरिहर’ का ‘मायानन्द बलिदान’ नाटक प्रकाशित हुआ। इसे दूसरे रूप में पेरियार ललई सिंह यादव ने वर्ष 1966 में गद्य के रूप में लिखा। दोनों रचनाओं में वैचारिक समानताओं के बावजूद अनेक अंतर हैं। बता रहे हैं कंवल भारती
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उत्तर भारत के शोषितों-पीड़ितों को द्विजवादियों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए पेरियार ललई सिंह यादव ने आजीवन संघर्ष किया। लेकिन आज उत्तरप्रदेश में दलित-बहुजनों की राजनीति करने वाले अखिलेश-मायावती के लिए परशुराम महत्वपूर्ण हो गए हैं। आर. के. गौतम का विश्लेषण
पेरियार के विचारों से आज भी भारत का ब्राह्मणवादी समाज आगबबुला हो उठता है। ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले में पिछले दिनों घटित हुई, जहां द्विजों ने ओबीसी वर्ग के एक अधिवक्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट
सिद्धार्थ बता रहे हैं पेरियार ललई सिंह यादव के अदम्य साहस के बारे में, जिसके बूते उन्होंने उत्तर भारत में राम को खारिज करने वाली पेरियार की किताब सच्ची रामायण को प्रकाशित किया। बाद में जब सरकार ने किताब को प्रतिबंधित किया तब उन्होंने सरकार को अदालत में घसीटा और मात दी
ओमप्रकाश कश्यप बता रहे हैं कि पेरियार ललई सिंह यादव एक फॉरेस्ट गार्ड से कैसे उत्तर भारत के अगुआ सामाजिक क्रांतिकारी बने। साथ ही यह भी कि कैसे अपने दम पर उन्होंने सच्ची रामायण को प्रकाशित किया और जब सरकार ने उसे प्रतिबंधित किया तब उसे न केवल अदालत में मजबूत चुनौती दी बल्कि जीत भी दर्ज की
लंबे समय से हिंदी पाठकों को एक ऐसे मुकम्मल किताब की जरूरत महसूस हो रही थी, जो पेरियार के विचारों के विविध आयामों से उन्हें परिचित करा सके। फारवर्ड प्रेस द्वारा इस किताब का प्रकाशन इसी जरूरत को पूरा करने के लिए किया गया है
The father of the Dravidian movement was a rationalist, a social reformer, a political activist and, above all, an unabashed critic of Hinduism. This book offers a simplified yet accurate Hindi translation of Periyar’s original writings
आंबेडकर के भाषणों के हिंदी अनुवाद के संकलन ‘सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें’ को उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 अगस्त 1970 को जब्त करने का आदेश दिया था। किताब के प्रकाशकों जिनमें एक ललई सिंह यादव भी थे, ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायालय ने सरकार के फैसले को गलत करार दिया
1968 में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता ललई सिंह ने ईवी रामासामी पेरियार की चर्चित पुस्तिका ‘रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ के नाम से प्रकाशित किया था, जिस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था। ललई सिंह ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ लंबी लडाई लडी, जिसमें उनकी जीत हुई