मुक्ता सालवे जोतीराव फुले-सावित्रीबाई फुले की पाठशाला की छात्रा थीं। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने मांग महारों के दुखों, चुनौतियों और निवारण के उपायों के संबंध में विस्तृत निबंध लिखा, जिसे मराठी पत्रिका ज्ञानोदय ने प्रकाशित किया। सिद्धार्थ बता रहे हैं कि इस लेख में मुक्ता सालवे के मन में पेशवाई ब्राह्मणों के खिलाफ उठने वाले अंगार तो थे ही, मुक्ति का मार्ग भी था
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कम लोगों का ही ध्यान सावित्रीबाई फुले के पत्रों पर जाता है। सिद्धार्थ लिखते है कि सावित्रीबाई फुले के पत्रों में व्यापक समाज की चिंता, इंसानियत के प्रति गहरे प्रेम, अन्याय के प्रति तीखे विद्रोह, जातिवादी मानसिकता के खिलाफ आक्रोश और समता-आधारित समाज की आशाएं अभिव्यक्त हैं
Savitribai Phule’s letters are still relatively unknown. They demonstrate her concerns for society, love for humanity, revolt against injustices, anger against the casteist mindset and hope for building an egalitarian society, writes Siddharth