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दूसरे राज्यों से वापस आए प्रवासी मजदूरों पर किए गए यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट बताती है कि इन मजदूरों में 70 प्रतिशत मजदूर सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। इनके समक्ष रोजी-रोटी का संकट है। बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उनके हालात के बारे में बता रहे हैं हुसैन ताबिश
लॉकडाउन के दौरान एक ओर प्रवासी मजदूर, जिनमें बहुलांश दलित, पिछड़े और आदिवासी समुदायों के हैं, तमाम दुख झेल रहे हैं, वहीं इन समुदायों के जनप्रतिनिधि मौन धारण किए हुए हैं। डॉ. योगेंद्र मुसहर का विश्लेषण
A couple who used to work in a brick kiln are trudging along the highway in Madhya Pradesh. They have lost their six-month-old son during the journey but they believe home, hundreds of kilometres away, is in sight
ईंट भट्टे में काम करने वाला एक आदिवासी दंपत्ति, मध्यप्रदेश के एक हाईवे पर पैदल निकल पड़ा। रास्ते में उसने अपना छह माह का बच्चा खो दिया। परन्तु फिर भी, सैकड़ों किलोमीटर दूर स्थित उनके गांव की ओर उनकी यात्रा जारी है
प्रवासी मजदूरों के लौटने से गांवों में रोजगार का संकट गहराने लगा है। ऐसे में मनरेगा योजना के जरिए हालात में बदलाव संभव है। लेकिन इसके लिए सरकार को अपनी नीति और नीयत दोनों बदलने की जरूरत है। बता रहे हैं नवल किशोर कुमार
दिल्ली में ओबीसी वर्ग के वे लोग जो 1993 के बाद दूसरे प्रदेशों से आए हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। फिर चाहे वे रिक्शा चलाते हों, दिहाड़ी मजदूर हों या फिर रेहड़ी लगाने वाले ही क्यों न हों। दिल्ली चुनाव के मद्देनजर यह सवाल संविधान बचाओ संघर्ष समिति द्वारा उठाया गया है
Walter Fernandes says the Citizenship (Amendment) Act 2019 clearly poses a threat to Tribal language, culture and identity in Northeast India. He dismisses the theory that the migration to the Northeast is the result of religious persecution in Bangladesh. The Bangladeshis come for land, he says. Excerpts from his interview with Goldy M. George
वाल्टर फर्नांडिस का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, उत्तरपूर्वी भारत के आदिवासियों की भाषा, संस्कृति और पहचान के लिए खतरा है. वे इस दावे से सहमत नहीं है कि बांग्लादेशी, भारत के उत्तरपूर्वी राज्यों में इसलिए आ रहे हैं क्योंकि वे अपने देश में धार्मिक प्रताड़ना के शिकार हैं. उनका मानना है कि वे कृषि भूमि की तलाश में भारत आ रहे हैं. प्रस्तुत है गोल्डी एम. जॉर्ज के साथ उनकी बात-चीत का सम्पादित अंश
जलवायु परिवर्तन का असर हमसे ज्यादा जंगलों पर पड़ रहा है। इसके विस्तार को जानने की कोशिश एएमयू में होगी तो अहमदाबाद में गूगल और माइक्रोसाफ्ट जैसी ख्यात कंपनियों के कर्ताधर्ता डेटा विश्लेषण को लेकर मिलेंगे। देश के अन्य शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थानों की गतिविधियों की जानकारी पढें, इस हफ्तावार कॉलम में
The fake placement agencies take women and children from the state to Delhi, Mumbai and Kolkata in the name of getting them jobs. Instead they are sold and have to face physical and mental torture. It is surprising that the government and administration think that the problem will be solved merely by making a law. At the root of this problem is poverty and starvation and laws cannot solve it
फर्जी प्लेसमेंट एजेंटों द्वारा राज्य की महिलाओं व बच्चों को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में नौकरी दिलाने के नाम पर ले जाकर बेच दिया जाता है जहां उनका शारीरिक व मानसिक शोषण होता है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सरकार और प्रशासन की सोच यह है कि सिर्फ कानून बना देने से ही समस्याएं खत्म हो जाएंगी परंतु ऐसी समस्या सिर्फ कानून से हल होने वाली नहीं है