धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए माननीय न्यायालय से व्यक्ति स्वातंत्रय के पक्ष में जो भावना व्यक्त की है, वह उचित है। लेकिन भारत जैसे देश में, जहां जाति आधारित भेदभाव की अनगिनत सीढ़ियां हैं, और उन्हें नैतिक साबित करने वाले धर्मग्रंथ हैं, वहां इस व्यैक्तिक-मुक्ति के मायने क्या होंगे, यह तुरंत कह पाना कठिन है