मानवाधिकारों की पैरवी हालांकि हर प्रगतिशील साहित्य करता आया है लेकिन दलित साहित्य, दलित समाज में हुए मानवाधिकार के हनन और इससे उपजी पीड़ा का धधकता दस्तावेज है। यह केवल समस्या को उजागर करने वाला साहित्य ही नहीं है बल्कि समस्या के निवारण का भी साहित्य है। बता रही हैं अनामिका अनु