आज जो हो रहा है उसके पीछे वो ज़हरीली विचारधाराएं हैं, जिन्होंने सदैव इंसान और इंसान में भेद किया है, जो घृणा का कारोबार करते रहे हैं और लोगों के ज़ेहन को इतना विषाक्त कर चुके हैं कि वे किसी का भी अपमान कर सकते हैं। किसी को भी नीचा दिखाने और मिटाने के लिए कोई भी हद पार कर सकते हैं। बता रहे हैं भंवर मेघवंशी
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बीते 15 अक्टूबर, 2021 को सिंघु बार्डर पर एक दलित की बर्बर हत्या कर दी गई। उसके उपर ‘सरबलोह’ नामक ग्रंथ की बेअदबी करने का आरोप था। लेकिन क्या यह आरोप इतना बड़ा आरोप था कि उसकी जान ले ली गई? लखबीर सिंह की हत्या के एक सप्ताह बाद सिंघु बार्डर का आंखों-देखा हाल
A Dalit man was brutally done to death at Singhu on the Delhi-Haryana border on 15 October 2021. It was alleged that he had defiled the Sarbaloh, the Nihang scripture. But did this ‘offence’ warrant the taking of his life? Forward Press visited Singhu a week after Lakhbir Singh’s murder
लेखक व पत्रकार बजरंगबिहारी तिवारी बता रहे हैं इस वर्ष कोरोना काल के दौरान दलित स्त्रियों के खिलाफ हुई कुछ जघन्य अपराधों के बारे में। आज पढ़ें, जनवरी, 2021 में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले में घटित एक आपराधिक वारदात के बारे में
गांधी की हत्या से पेरियार दुखी थे। उन्होंने ‘कुदी आरसु’ में दो संपादकीय लिखे। उन्होंने लिखा कि वर्णाश्रम व्यवस्था के कायम रहने तक, जिसने गांधी को हमसे छीन लिया है, पंडित नेहरू तथा राजगोपालाचारी अपनी संपूर्ण निष्ठा, बुद्धिमानी और नि:स्वार्थ कोशिशों के बावजूद इस देश में सुशासन नहीं ला सकते
गत दो जुलाई को केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले के एक गांव में एक दलित युवक की हत्या कर दी गई। परिजनों के मुताबिक हत्या की वजह जमीन को लेकर विवाद है। उनका यह भी आरोप है कि पुलिस उंची जाति के अपराधियोें की मदद कर रही है और लीपापोती में लगी है। सुशील मानव की खबर
बीते 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के बाद मेरठ में चार दलित नौजवानों की हत्या हुई है। मारे गए सभी नौजवान सामाजिक कार्यकर्ता थे। इन मामलों में पुलिस पर सवर्णों को बचाने का आरोप लग रहा है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
नफरत फैलाने वालों के नाम पर रेलवे स्टेशन बनते हैं, लेकिन प्रेम करने वालों, जाति तोड़ने वालों और दुनिया में बराबरी चाहने वालों की मूर्ति आदिवासी, दलित और पिछड़े बहुतायत वाले राज्य तेलंगाना में इसलिए नहीं लगाने दी जाएगी क्योंकि यह मूर्ति प्रेम को महान और जातीय श्रेष्ठता के घमंड और उसकी जड़ता को समाज के विकास और बराबरी के मूल्यों की दुश्मन बताएगी :