दलित पैंथर आंदोलन की शुरुआत 29 मई, 1972 को हुई और तीन साल के भीतर इसके नाम अनेक उपलब्धियां रहीं। यह वह दौर था जब पूरे देश सहित महाराष्ट्र में दलितों पर अत्याचार जोरों पर था। यह आंदोलन उत्साही दलित युवकों की संगठित सोच का परिणाम था। बता रहे हैं देवेंद्र शरण
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दलित पैंथर के बारे में कहा जाता है कि उसका नाम सुनते ही नामी गुंडे भी थर्रा उठते थे और दलित पैंथर के उभार तथा कार्यशैली के कारण स्थानीय पुलिस को भी अपनी दलितों के प्रति कार्यशैली बदलनी पड़ी। बता रहे हैं द्वारका भारती
Authors normally use their pen to express their sensitivities. But these Dalit authors not only prepared a fertile ideological ground for the movement but also took part in it themselves, writes Dwarka Bharti
मोहनदास नैमिशराय बता रहे हैं कि दलित पैंथर की सफलता में दलित साहित्य की अहम भूमिका रही। मसलन नामदेव काव्य संग्रह ‘गोलपीठा’ जो कि 1972 में प्रकाशित हुआ। जिसके आने पर मराठी साहित्य जगत में एक भूचाल सा आ गया। बहुत से सवर्ण लेखकों और समीक्षकों को बुरा लगना लाजमी था
बाबासाहेब की मृत्यु के बाद आंबेडकरवादी आंदोलन उनकी रखी नींव पर खड़ा हुआ। हमने उनकी विरासत आंबेडकरवादियों की पुरानी पीढ़ी से उत्तराधिकार में पाई थी और हम कुछ अलग करना चाहते थे। बता रहे हैं दलित पैंथर के सहसंस्थापक ज. वि. पवार
Today is the 48th anniversary of the founding of the Dalit Panther movement. In the following excerpt from ‘Dalit Panther: An Authoritative History’, co-founder J.V. Pawar describes the incidents that led to Mumbai’s Ambedkarite youth coming together against social injustice as the Dalit Panthers
आंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद दलित पैंथर का काल, आंबेडकरवादी आंदोलन का स्वर्णकाल था। इसके सह-संस्थापक ज. वि. पवार बता रहे हैं उन तत्वों के बारे में जिनके कारण उन्होंने 1972 में अमेरिका में अश्वेतों के आंदोलन ब्लैक पैंथर के तर्ज पर शुरू हुए इस आंदोलन का आधिकारिक इतिहास लिखने की प्रेरणा मिली
ज. वि. पवार की यह किताब मूल रूप से मराठी में थी, जिसका अंग्रेजी अनुवाद पिछले वर्ष फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था। महज एक वर्ष के अंदर ही इसके दो संस्करण निकाले जा चुके हैं। अब इसे हिंदी में प्रकाशित किया गया है। सिद्धार्थ बता रहे हैं हिंदी के पाठकों के लिए इस किताब के महत्व के बारे में
J.V. Pawar had originally written this book in Marathi. Its Hindi translation, published by the Forward Press, is already in its second edition. Now, Forward Press has released the Hindi edition
दलित पैंथर के सह-संस्थापक ज.वि. पवार बता रहे हैं कि पहली बार उन्होंने कब डॉ. आंबेडकर को जाना। मुंबई मिरर की संपादक मीनल बघेल से बातचीत में पवार यह भी बता रहे हैं कि वे कैसे नौका से बम्बई पहुंचे, कैसे उन्होंने अपना जीवनयापन किया और किस तरह वे एक सामाजिक कार्यकर्ता बने. और यह भी कि शिवसेना का उदय कैसे हुआ
दलित पैंथर्स के संस्थापकों में से एक जे.वी. पवार के मुताबिक, अमेरिका के काले लोग बोलते हैं कि उन्हें काला होने पर गर्व है। मगर, हम दलित कब तक रहेंगे? गुलाम कब तक रहेंगे?
ढसाल साहब बहुत ही डोमिनेटिंग व्यक्तित्व के स्वामी रहे, जिनके सामने आने पर बड़े से बड़े लोग भी निस्तेज हो जाया करते थे। किन्तु एक खास बात यह थी कि उनके चेहरे पर सब समय एक ऐसी मुस्कान रहती थी, जिसके नीचे एवरेस्ट सरीखा बुलंद आत्मविश्वास और करुणा का अपार सागर हिलोरें मारते रहता था
जैसे सत्तर के शुरुआती दशक में मुंबई के स्लम धारावी की कोख से मराठी दलित साहित्य एवं दलित पैंथर्स आंदोलन का जन्म हुआ वैसे ही दिल्ली के सबसे बड़े स्लम शाहदरा ने दलित साहित्य आंदोलन को पाला-पोसा है। डॉ. कुसुम वियोगी का लेख :
While Marathi Dalit Literature and the Dalit Panther movement was born in Mumbai’s Dharavi in the early Seventies, Shahdara, home to Delhi’s largest slum, nurtured Hindi Dalit Literature, writes Kusum Viyogi