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मोहनदास नैमिशराय बता रहे हैं कि दलित पैंथर की सफलता में दलित साहित्य की अहम भूमिका रही। मसलन नामदेव काव्य संग्रह ‘गोलपीठा’ जो कि 1972 में प्रकाशित हुआ। जिसके आने पर मराठी साहित्य जगत में एक भूचाल सा आ गया। बहुत से सवर्ण लेखकों और समीक्षकों को बुरा लगना लाजमी था
Today is the 48th anniversary of the founding of the Dalit Panther movement. In the following excerpt from ‘Dalit Panther: An Authoritative History’, co-founder J.V. Pawar describes the incidents that led to Mumbai’s Ambedkarite youth coming together against social injustice as the Dalit Panthers
बाबासाहेब की मृत्यु के बाद आंबेडकरवादी आंदोलन उनकी रखी नींव पर खड़ा हुआ। हमने उनकी विरासत आंबेडकरवादियों की पुरानी पीढ़ी से उत्तराधिकार में पाई थी और हम कुछ अलग करना चाहते थे। बता रहे हैं दलित पैंथर के सहसंस्थापक ज. वि. पवार
आंबेडकर के परिनिर्वाण के बाद दलित पैंथर का काल, आंबेडकरवादी आंदोलन का स्वर्णकाल था। इसके सह-संस्थापक ज. वि. पवार बता रहे हैं उन तत्वों के बारे में जिनके कारण उन्होंने 1972 में अमेरिका में अश्वेतों के आंदोलन ब्लैक पैंथर के तर्ज पर शुरू हुए इस आंदोलन का आधिकारिक इतिहास लिखने की प्रेरणा मिली
J.V. Pawar had originally written this book in Marathi. Its Hindi translation, published by the Forward Press, is already in its second edition. Now, Forward Press has released the Hindi edition
ज. वि. पवार की यह किताब मूल रूप से मराठी में थी, जिसका अंग्रेजी अनुवाद पिछले वर्ष फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था। महज एक वर्ष के अंदर ही इसके दो संस्करण निकाले जा चुके हैं। अब इसे हिंदी में प्रकाशित किया गया है। सिद्धार्थ बता रहे हैं हिंदी के पाठकों के लिए इस किताब के महत्व के बारे में
दलित पैंथर के सह-संस्थापक ज.वि. पवार बता रहे हैं कि पहली बार उन्होंने कब डॉ. आंबेडकर को जाना। मुंबई मिरर की संपादक मीनल बघेल से बातचीत में पवार यह भी बता रहे हैं कि वे कैसे नौका से बम्बई पहुंचे, कैसे उन्होंने अपना जीवनयापन किया और किस तरह वे एक सामाजिक कार्यकर्ता बने. और यह भी कि शिवसेना का उदय कैसे हुआ
दलित पैंथर्स के संस्थापकों में से एक जे.वी. पवार के मुताबिक, अमेरिका के काले लोग बोलते हैं कि उन्हें काला होने पर गर्व है। मगर, हम दलित कब तक रहेंगे? गुलाम कब तक रहेंगे?
When Gandhism failed to address the evil of caste and squabbles within the RPI lay waste to Ambedkar’s legacy, a bunch of young Marathi writers turned to militant and politically astute activism. Abimanyu Kumar reviews ‘Dalit Panthers: An Authoritative History’
History bears witness to the fact that Dalit Literature had emerged in Maharashtra well before 1950. Built on an ideological foundation substantiated by Dr B.R. Ambedkar, Dalit Literature is today said to be posing a challenge to mainstream literature. How did Dalit Literature undergo this metamorphosis? J.V. Pawar, a co-founder of Dalit Panthers, has the answer
अतीत साक्षी है कि महाराष्ट्र में दलित साहित्य 1950 के पहले ही जन्म ले चुका था। डॉ. आंबेडकर ने इसकी वैचारिक बुनियाद को पुख्ता किया और आज यह कथित तौर पर मुख्य धारा के साहित्य को चुनौती दे रहा है। पढ़ें दलित साहित्य से लेकर आंबेडकरवादी साहित्य बनने की कहानी, बता रहे हैं दलित पैंथर्स के संस्थापकों में से एक जे. वी. पवार :
ढसाल साहब बहुत ही डोमिनेटिंग व्यक्तित्व के स्वामी रहे, जिनके सामने आने पर बड़े से बड़े लोग भी निस्तेज हो जाया करते थे। किन्तु एक खास बात यह थी कि उनके चेहरे पर सब समय एक ऐसी मुस्कान रहती थी, जिसके नीचे एवरेस्ट सरीखा बुलंद आत्मविश्वास और करुणा का अपार सागर हिलोरें मारते रहता था
While Marathi Dalit Literature and the Dalit Panther movement was born in Mumbai’s Dharavi in the early Seventies, Shahdara, home to Delhi’s largest slum, nurtured Hindi Dalit Literature, writes Kusum Viyogi
जैसे सत्तर के शुरुआती दशक में मुंबई के स्लम धारावी की कोख से मराठी दलित साहित्य एवं दलित पैंथर्स आंदोलन का जन्म हुआ वैसे ही दिल्ली के सबसे बड़े स्लम शाहदरा ने दलित साहित्य आंदोलन को पाला-पोसा है। डॉ. कुसुम वियोगी का लेख :