असल में सामाजिक ताने-बाने, जाति-व्यवस्था और दूसरे मामलों में मुसलमान समाजों की वास्तविकता अभी तक स्पष्ट नहीं थी और सम्पूर्ण मुसलमान समाजों का बौद्धिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व यहां के अशराफ (अगड़े) मुसलमान करते रहे हैं। ठीक उसी तरह जैसे लंबे समय तक पिछड़ों का नेतृत्व भारत के सवर्ण करते रहे हैं। बता रहे हैं रामजी यादव