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धर्मनिरपेक्षता की राजनीति आरएसएस के लिए सबसे आसान है। हालांकि इस स्थिति के निर्माण के लिए उसने लंबे समय से राजनीतिक अभियान चलाया है और बहुजन युवाओं को हिन्दू उन्मादी बना दिया है। ऐसे में तेजस्वी यादव की रणनीति ने एक नई राह दिखाई है। कंवल भारती का विश्लेषण
मंडल की राजनीति के सहारे शीर्ष पर पहुंचे लालू और मुलायम के दिन अब लदते दिख रहे हैं। उनका यह हश्र भाजपा की ओबीसी में विभाजन की रणनीति के कारण हुआ है। माना जा रहा है कि राजनीतिक स्तर पर इसे आजमा चुकी भाजपा अपनी राजनीतिक पकड़ को चिरजीवी बनाए रखने के लिए ओबीसी का उपवर्गीकरण करेगी
प्रेमकुमार मणि बता रहे हैं कि भाजपा और राजद एक हो गईं, तब नीतीश कुमार की स्थिति क्या होगी। साथ ही यह भी कि 2014 में जदयू ने 37 सीटों पर लड़कर जितना वोट पाया था, उतने ही वोट इस बार राजद ने 21 सीटों पर लड़कर हासिल किया है। यानी राजद की संभावनाएं समाप्त नहीं हुई हैं
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
गुजरात में रहने वाले बिहारवासियों और उत्तर प्रदेश के लोगों को पीटा जा रहा है। उन्हें भगाया जा रहा है। सरकारें मौन हैं। क्या इसकी वजह केवल यह है कि केंद्र के साथ-साथ गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश में एक ही राजनीतिक खेमे एनडीए की सरकर है? इस राजनीतिक सवाल से इतर एक दलित बिहारी की व्यथा
Nitish Kumar has not had to suffer any damage. His public image is such that even the BJP has had to declare unconditional support for him again and again. He has problems within his party. JD-U may be a national party but it’s become home to lazy, shortsighted and sycophantic leaders. Read Premkumar Mani’s analysis
नीतीश कुमार बहुत नुकसान में नहीं हैं। लोक दायरे में उनकी स्थिति ऐसी तो बनी ही हुई है कि भाजपा को भी उनके लिए बिना शर्त समर्थन की घोषणा बार-बार करनी पड़ रही है। उनकी कठिनाइयां उनके दल के भीतर है। कहने को उनका दल राष्ट्रीय जरुर है लेकिन वह काहिल, अदूरदर्शी और चापलूस नेताओं का आरामगाह बन कर रह गया है। विश्लेषण कर रहे हैं प्रेमकुमार मणि :
Will Lalu confront Nitish the way he confronted Mohan Bhagwat on a review of the reservation policy?
क्या लालू प्रसाद यादव आरक्षण की नीति पर पुनर्विचार के मुद्दे पर नीतीश कुमार को उसी तरह घेर पायेगें जिस तरह उन्होंने भगवा को घेरा था
Prem Kumar Mani in conversation: ‘The government should have figures on OBCs too. This will also reveal the numbers of the dominant classes’
प्रेमकुमार मणि के साथ बातचीत : ओबीसी की वास्तविक संख्या का भी पता होना चाहिए। इससे यह भी पता चल जाएगा कि दरअसल अदर्स, जो हमारा प्रभु वर्ग है, कितने हैं
The onus is on the OBC political parties and organizations to put pressure on the government – first for the publication of the caste-census data and then for paving the way for OBCs’ rightful share in government services
ओबीसी पार्टियों व संगठनों को सरकार को इसके लिए मजबूर करना होगा कि वह जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करे। जब भी ये आंकड़े सार्वजनिक किए जाते हैं, इन्हीं पार्टियों और संगठनों का यह दायित्व होगा कि वे सरकार पर इस बात के लिए दबाव बनाएं कि सरकारी सेवाओं में सभी जातियों को, आबादी में उनके हिस्से के अनुपात में आरक्षण दिया जाए
The credibility enjoyed by Lalu among the forces of social justice and secularism and the positive impact of the development brought about by Nitish combined to produce this victory. The enthusiasm of women of all castes and classes also played a role
सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्ष शक्तियों के बीच लालू प्रसाद की विश्वसनीयता और प्रदेश में नीतीश कुमार के विकास कार्यों के प्रति एक सकारात्मक भाव ने मिलकर इस जीत को संभव बनाया। सबसे बढ़कर हर जाति-वर्ग की महिलाओं की उत्कंठा ने, जिसने उन्हें भारी संख्या में मतदान केन्द्रों तक पहुंचाया
What turned out to be the game changer were RSS Chief Mohan Bhagwat’s statements regarding need for a fresh look into the issue of reservation. These statements created uncertainty in the minds of the OBCs and Dalits, the beneficiaries of reservation
स्थिति में नाटकीय परिवर्तन आया आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत के इस बयान के बाद कि आरक्षण के मुद्दे पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। इससे आरक्षण से लाभान्वित होने वाले ओबीसी व दलित वर्गों के मतदाताओं के मन में असुरक्षा व अनिश्चितता का भाव पैदा हो गया