अनुज लुगुन की कविता की शैली मुहावरेदार है। वैसे भी जब सत्ता अपनी राजनीति में भाषिक जुमले और राजनीतिक नारों के जरिए जनता की आवाज का दमन करती है तब कविता को नई शैली और मुहावरों की जरूरत पड़ती है। इसके अभाव में उनके भाषिक हिंसा से संघर्ष नहीं किया जा सकता है। बता रहे हैं महेश कुमार