कंवल भारती के मुताबिक, भारत के किसानों ने मोदी सरकार के कारपोरेट कृषि कानूनों में निहित खतरों को अच्छी तरह पहचान लिया है। जिस तरह दूध का जला, छाछ भी फूंककर पीता है, उसी प्रकार हरित क्रांति से उभरी बाजार-व्यवस्था के दुष्प्रभावों से प्रभावित किसानों को ये कानून भी रास नहीं आ रहे हैं