‘कोई नेता दूसरी पार्टी से आ गया तो उसके साथ जाति के सारे मतदाता आ गये, अब ऐसा नहीं है। यह फॉर्मूला पिट चुका है। यदि आप कोई नॅरेटिव लेकर किसी पार्टी में आते हैं तो आपके पास उतना समय भी होना चाहिये कि आप उन बातों को अपने समुदाय को समझा सकें कि हां मैंने इस स्टैंड पर पार्टी छोड़ी है। … आरक्षण, जातीय जनगणना आदि मुद्दे प्रभावशाली होने के बावजूद जनता के बीच महत्वपूर्ण मुद्दे नहीं बन सके।’ पढ़ें, पूर्वांचल के दो वरिष्ठ पत्रकारों मनोज कुमार सिंह व रामजी यादव का विश्लेषण