उच्चता की ग्रंथि से पीड़ित जातियों के उच्छश्रृंखल व्यवहार और जातीय अहंकार का राही जिस निर्ममता से विवेचन करते हैं, उससे स्वतंत्रता के आसपास के वर्षों में जातिगत भेदभाव की भयावह स्थिति उजागर हो जाती है। यह वह दौर था जब कुलीन जातियों का दंभ अपने चरम पर था और निचली जातियों के भीतर कोई परिवर्तनशील चेतना जागृत नहीं हुई थी। बता रही हैं अम्बरीन आफताब