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डॉ. मोतीरावण कंगाली गोंडी भाषा, साहित्य, संस्कृति और धर्म के अध्येता रहे। उनके गहन शोधों के कारण भारत की गैर-आर्य संस्कृति और परंपराओं को लेकर आज नयी समझ बनी है। उनके बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं सूर्या बाली
Lokesh Sori made history on 28 September 2017. He gave the Dalitbahujan cultural struggle a fillip by having an FIR registered against those insulting people’s mythological heroes. He remained firm in his beliefs till the last day. A tribute to a brave friend
लोकेश सोरी ने 28 सितंबर 2017 को भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। उन्होंने दलित-बहुजनों के सांस्कृतिक संघर्ष को नयी धार देते हुए मिथकीय बहुजन जननायकों का अपमान करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। अंतिम दिन तक वे अपने विचारों के प्रति दृढ रहे। बहादुर साथी को श्रद्धांजलि
Our myths empower us. It was Jotirao Phule who first noted the importance of Bahujan myths in his treatise ‘Gulamgiri’. Later, Ambedkar too wrote at length on the subject. These myths have assumed greater significance in the second decade of the 21st century, explains Kanwal Bharti
हमारे मिथक हमारी ऊर्जा हैं। जोती राव फुले ने सबसे पहले अपनी पुस्तक गुलामगिरी में बहुजन मिथकों के महत्व को उकेरा था। बाद में आंबेडकर ने भी बहुजन मिथकों के बारे में विस्तार से चर्चा की। इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में ये मिथक और भी महत्वपूर्ण हो गये हैं, बता रहे हैं कंवल भारती :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में आदिवासी युवाओं ने महिषासुर-रावण वध का विरोध करते हुए यात्रा निकाली। इस दौरान ब्राह्मणवादियों द्वारा थोपी जा रही परंपराओं का विरोध व पेसा कानून, वनाधिकार कानून और पांचवीं अनुसूची को लेकर जागरूकता अभियान चलाया गया। फारवर्ड प्रेस की खबर
Who was Ravan? Was he a Brahmin? If he was one, why is he considered a Rakshash (demon)? He is regarded as a foreigner in certain texts, whereas some ancient works say he is a Buddhist. Bahujan authors have also shared their thoughts. An analysis by Kanwal Bharti
रावण कौन था? क्या वह ब्राह्मण था और यदि वह ब्राह्मण था तब राक्षस कैसे हुआ? कुछ ग्रंथों में उसे विदेशी कहा गया। वहीं कुछ ग्रंथों में उसे बौद्ध धर्मावलम्बी भी कहा गया है। बहुजन लेखकों ने भी रावण की व्याख्या की है। विश्लेषण कर रहे हैं कंवल भारती :
छत्तीसगढ़ के आदिवासी अपने-अपने इलाके के थाना प्रभारी से लेकर राज्यपाल तक से मांग कर रहे हैं कि रावण-महिषासुर वध के प्रदर्शन पर रोक लगायी जाय क्योंकि वे उनके पुरखे हैं। लेकिन उनकी मांग को सरकारी अधिकारी अनसुना कर रहे हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :
रावण वध और महिषासुर मर्दन जैेसे वर्चस्ववादी द्विज परंपरा का विरोध पूरे देश में हो रहा है। अब इस सांस्कृतिक संघर्ष में भीम आर्मी भी मैदान में कूद चुकी है। वहीं अन्य बहुजन संगठनों ने आवाज बुलंद की है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Periyarite organization Thanthai Periyar Dravidar Kazhagam believes that Ravan and his brother Kumbhakarn were of Dravidian origin and the North Indian tradition of burning their effigies as a symbol of the victory of good over evil is anti-Dravida and designed to humiliate the Dravidians. Sanjeev Kumar Tells
पेरियारवादी संगठन थनथई पेरियार द्रविदर कषग़म का मानना है कि रावण और उनका भाई कुंभकरण द्रविड़ समाज से संबंध रखते थे और उत्तर भारतियों द्वारा दशहरे के मौक़े पर ‘अच्छाई पर बुराई की जीत’ के प्रतीक के रूप में रावण और कुंभकरण का पुतला दहन करना द्रविड़ समाज की अवहेलना और द्रविड़ समाज के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार है। बता रहे हैं संजीव
सूरजपुर के आदिवासियों में महिषासुर वध और रावेन दहन को लेकर काफी आक्रोश है। उन्होंने चेतावनी दी है कि दशहरा के दौरान इन कृत्यों की पुनरावृत्ति की गयी तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया जाएगा। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :
Mahabali still stands for the cultural lingering of the egalitarian Shramana tradition among the people of various parts of India from Maharashtra to Kerala. Bali is the unconquerable spirit of equality and justice for the common folk, writes Ajay S. Sekher
महाराष्ट्र से केरल तक भारत के एक बहुत बड़े हिस्से में महाबली समतावादी बहुजन-श्रमण परंपरा की सांस्कृतिक विरासत के रूप में मौजूद हैं। बलि आम जन के लिए समता और न्याय की अपराजेय भावना के प्रतीक हैं। इस विरासत के संदर्भ में बता रहे हैं, अजय एस. शेखर :