निर्देशक ऋतेश कुमार के मुताबिक, वे कहानी को यथासंभव उसके समयकाल और परिवेश में चित्रित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कहानी 1962 में छपी थी। 2020 में 1960 के आसपास के समय को दिखाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है
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