जर्नादन गोंड बता रहे हैं आदिवासियों के प्रकृति पर्व सरहुल के बारे में। उनके मुताबिक इस पर्व के बारे में गैर आदिवासी साहित्यकारों ने भी लिखा है। लेकिन उनके लेखन का अपना नजरिया है। जबकि आदिवासी साहित्यकारों ने इसके मूल स्वरूप का वर्णन किया है
–