यहां विशेष रूप से ऐसी दो घटनाओं का जिक्र जरूरी है, जो साबित करती हैं कि जोतीराव के विचार इन मुद्दों पर कितने दृढ थे। एक बार जब महादेव गोविन्द रानाडे, जो उन दिनों पुणे में जज थे, जोतीराव फुले को बताया कि उनकी भी एक बाल विधवा बहन है, तो उन्होंने दुखी हो कर पूछा कि उसका विवाह क्यों नहीं किया गया। जब रानाडे से जबाब देते नहीं बना और वे टाल-मटोल करने लगे तो पास बैठे जोतीराव भड़क गये( पढ़ें, सुजाता पारमिता का यह आलेख