भारतीय द्विज इतिहासकार लक्ष्मीबाई को स्वतंत्रता संग्राम की महानायिका बताते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि स्त्रियों की स्वतंत्रता की जो लड़ाई सावित्रीबाई फुले ने लड़ी, वह उन्हें लक्ष्मीबाई से अधिक प्रभावकारी महानायिका बनाती है। ऐसी महानायिका जिसने भारत की तमाम महिलाओं को गुलामी से आजाद होने का मार्ग प्रशस्त किया। स्मरण कर रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप
–
जो महिलाएं वर्जनाओं को भेद लक्ष्य की प्राप्ति करना चाहती हैं, सामाजिक ढांचे को तोड़ नए आयाम करना चाहती हैं, रूढ़ियों को पीछे छोड़ आगे बढ़़ना चाहती हैं, उनके लिए सावित्रीबाई फुले सबसे अधिक प्रेरणादायक आईकॉन हैं। स्मरण कर रही हैं निर्देश सिंह
रूपाली बताती हैं कि वह स्वयं दलित समुदाय से आती हैं और उनके सामने बड़ी चुनौती यही थी कि कोई संसाधन नहीं था। एक टीशर्ट से जो पैसे मिलते उससे दूसरा टीशर्ट और फिर इस तरीके से इस उद्यम को आगे बढ़ाया है
ओमप्रकाश कश्यप बता रहे हैं सगुणाबाई क्षीरसागर के बारे में। उन्होंने बालक जोतीराव फुले को पाला-पोसा तथा सावित्रीबाई फुले को शिक्षा ग्रहण के लिए प्रोत्साहित किया
संभाजी ब्रिगेड के प्रवक्ता डॉ. विकास पाटील के मुताबिक दुर्गा जैसे काल्पनिक चरित्रों से प्रेरणा से कहीं बेहतर है महान ऐतिहासिक महिला व्यक्तित्वों से प्रेरणा लेना। इससे महिलाओं का सशक्तिकरण होगा, जो आज के समय में बेहद जरूरी है। गुलजार हुसैन की खबर
सवाल यह है कि सविता आंबेडकर (प्रो. रजनीश शुक्ल के शब्दों में माई साहब) के नाम पर यह पीठ क्यों स्थापित की जा रही है? जहां तक मेरा अध्ययन है, स्त्री विषयक सविता आंबेडकर का कोई ऐसा काम नहीं है जिसे रेखांकित करने के लिए उनके नाम पर स्त्री अध्ययन पीठ बनाई जाए। बता रहे हैं सिद्धार्थ
भाजपा ने राजस्थान में यह खेल क्यों खेला? राजनीतिक अस्थिरता के लिए भाजपा इतनी बेचैन क्यों नजर आ रही है? क्या इसके पीछे कोई वैचारिक कारण और सरकार के नीतिगत निर्णयों से बन रहे नए राजनीतिक-सामाजिक समीकरण हैं, बता रहे हैं भंवर मेघवंशी
Why is the BJP bent on creating political instability in Rajasthan? Is it for ideological reasons? Is the party rankled by the new sociopolitical equations emerging in the state because of a string of policy decisions taken by the Gehlot government? Bhanwar Meghwanshi analyses the recent developments
सत्यशोधक परंपरा में महिला और पुरूष बराबर हैं। इसी परंपरा के तहत जोतीराव फुले ने सत्यशोधक विवाह की शुरूआत की थी। बीते 10 जून, 2020 को जोतीराव फुले-आंबेडकर को साक्षी मानकर, राहुल सावले और मौसमी चटर्जी आडंबर रहित तरीके से जीवन भर के लिए एक-दूसरे के हो गए
मौजूदा समय में कोविड-19 के कारण पूरे विश्व में दहशत है। भारत में भी प्रभावितों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे विषम हालात में अतीत के संकटमोचक याद आते हैं, जिन्होंने मानव सेवा की अनूठी मिसाल कायम की। बता रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप
आधुनिक भारत के इतिहास में 19वीं शताब्दी सही मायनों में परिवर्तन की शताब्दी थी। अनेक महापुरुषों ने उस शताब्दी में जन्म लिया। उनमें से यदि किसी एक को ‘आधुनिक भारत का वास्तुकार’ चुनना पड़े तो वे जोतीराव फुले ही होंगे। बता रहे हैं ओमप्रकाश कश्यप