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तीन साल पहले हुए भारत बंद का महत्व एससी-एसटी एक्ट की पुनर्बहाली तक सीमित नहीं है। व्यापकता में इस आंदोलन ने मुल्क की लोकतांत्रिक चेतना को झकझोरा और उत्पीड़ित समूहों की लोकतांत्रिक सक्रियता को आवेग प्रदान किया। बता रहे हैं रिंकु यादव
तीन साल पहले जब 2 अप्रैल, 2018 को भारत बंद किया गया तब दृश्य ऐतिहासिक था। दलित-बहुजन सड़क पर थे और उनके मन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के संदर्भ में दिए गए न्यायादेश के खिलाफ आक्रोश। बता रही हैं निर्देश सिंह
पिछले कुछ दिनों से निर्देश सिंह द्वारा संचालित सावित्रीबाई फुले पाठशाला की चर्चा लगातार मीडिया विमर्श के केंद्र में रहा है। साथ ही, इस पाठशाला में किसानों के बच्चों के साथ साथ दलित-बहुजन समाज के कूड़ा बीनने वाले बच्चों के पढ़ने आने के कारण किसान आंदोलन दलित-बहुजन समाज तक पहुंचने में कामयाब रहा है। सरकार को अब यह रास नहीं आ रहा। बता रहे हैं सुशील मानव
छत्तीसगढ़ के ब्राह्मण समाज के लोगों ने भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। इसके लिए वे उनके पिता नंदकुमार बघेल को माध्यम बना रहे हैं। उनका कहना है कि नंदकुमार बघेल के विचारों से उनका ब्राह्मणवाद छलनी हो रहा है। बता रहे हैं गोल्डी एम. जॉर्ज
Born into an upper-caste family in Kerala, P.S. Krishnan worked for upliftment of the Dalitbahujans during his time in the IAS. He proved that even a civil servant could play a significant role in the formulation and implementation of government policies for the wellbeing of the deprived. He passed away in Delhi on 10 November 2019
केरल के एक उच्च जातीय परिवार में जन्मे पी. एस. कृष्णन ने बतौर आईएएस अधिकारी दलित-बहुजनों के लिए काम किया। उन्होंने यह साबित किया कि नौकरी में रहते हुए वंचित जनता के पक्ष में सरकारी नीतियों का निर्माण व उनका अनुपालन कैसे कराया जा सकता है। बीते 10 नवंबर 2019 को दिल्ली में उनका निधन हो गया
In Santhebennur town, in Karnataka’s Davanagere district, men of the Uppara caste carried out a string of violent attacks on the Dalit community after they found Dalit boys swimming in the Bhadra river. Poet Huchangi Prasad was one of the victims
सामाजिक दृष्टि से अगड़ी जातियों और उच्च पिछड़ों के द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का विरोध करने के नकारात्मक परिणाम होंगे और ऐसा वातावरण निर्मित होगा जो समाज के एकीकरण, राष्ट्रीय एकता और देश की प्रगति व आर्थिक विकास के लिए घातक होगा
मध्य प्रदेश में दलितों पर अत्याचार करने का आरोप दो आरोपियों को महंगा पड़ा। उन्हें निचली अदालतों ने बरी कर दिया था। वे जिला जज पद के लिए क्वालिफाई भी कर गए। परंतु हाईकोर्ट ने उन्हें साफ कहा कि बरी होने का मतलब चरित्रवान होना नहीं होता
आईआईटी,रूड़की में तीन प्रोफेसरों के खिलाफ दलित छात्रा के शोषण को लेकर केस दर्ज किया गया है। पीड़ित छात्रा के न्याय के लिए भीम आर्मी और उत्तराखंड के बसपा नेताओं ने प्रदर्शन किया और आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की
फ्रांस में पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने को लेकर हुए जनविद्रोह के आगे सरकार को झुकना पड़ा। भारत में इस तरह के जनविद्रोह कभी सफल नहीं होते। क्योंकि यहां धर्मवाद के अलावा हिन्दू वर्ण व्यवस्था और जातिवाद किसी भी वर्ग को एकजुट होकर सरकार की मनमानी के खिलाफ खड़ा नहीं होने देते