ऊंची जातियों के लोग इस बात के महत्व को समझते हैं कि प्रचार के बिना उनका सांस्कृतिक और राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। पढ़े-लिखे गैर-ब्राह्मणों, विशेषकर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को उनसे सीखना चाहिए। बता रहे हैं सुमित चहल
–