दलित चेतना, सहानुभूति और स्वानुभूति लेखन में अंतर एवं दलित साहित्य की भाषा जैसे विषयों पर ओमप्रकाश वाल्मीकि ने तार्किक ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किये हैं, जो तर्कपूर्ण होने के साथ-साथ सठीक भी हैं। किंतु कुछ ऐसे संदर्भ हैं, जिनके बारे में उन्होंने अतार्किक सवाल अवैज्ञानिक ढंग से भी उठाये हैं, जो उनकी आलोचना दृष्टि पर सवाल खड़े करती हैं। बता रही हैं ज्योति पासवान