–
सपा में नेतृत्व के स्तर पर अखिलेश यादव के सजातीय लोगों को छोड़ दिया जाये तो अन्य लोगों का प्रतिनिधित्व कम है। पिछड़े और वंचित वर्ग से हमदर्दी का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी का यह रूप बहुत कुछ कहता है। बता रहे हैं जुबेर आलम
लेखक जुबैर आलम सवाल उठा रहे हैं कि किस प्रकार सपा और बसपा जैसी पार्टियों ने मुसलमानों के वोटों का केवल सत्ता के लिए इस्तेमाल किया। जबकि उनके सवाल सवाल ही रहे
Zubair Alam writes that India’s OBC leadership is predominantly Hindu and there are few, if any, Muslims in its ranks. He seeks an explanation from OBC leaders about why, in the past 30 years, no Muslim could emerge as an OBC leader
लेखक जुबैर आलम बता रहे हैं कि ओबीसी नेतृत्व में आपको हिन्दू नेता मिल जायेंगे लेकिन आपको ठीक से चार मुस्लिम नेता भी नहीं मिलेंगे जिनकी पहचान ओबीसी नेता की हो। ओबीसी के स्थापित नेतागणों को बताना चाहिए लगभग तीस साल के इस सफर में आखिर क्यों मुस्लिम समुदाय से ओबीसी नेतृत्व सामने नहीं ला पाये?
मंडल की राजनीति के सहारे शीर्ष पर पहुंचे लालू और मुलायम के दिन अब लदते दिख रहे हैं। उनका यह हश्र भाजपा की ओबीसी में विभाजन की रणनीति के कारण हुआ है। माना जा रहा है कि राजनीतिक स्तर पर इसे आजमा चुकी भाजपा अपनी राजनीतिक पकड़ को चिरजीवी बनाए रखने के लिए ओबीसी का उपवर्गीकरण करेगी
भारतीय राजनीति में ओबीसी का प्रभाव 2009 में ही कमजोर पड़ने लगा। लेकिन 2014 में मोदी लहर ने मंडल राजनीति को अप्रासंगिक बना दिया। इस बार हुए चुनाव में यह साबित हो गया कि सवर्णों का स्वर्ण युग वापस आ गया है
आरक्षण का मकसद शासन व प्रशासन में उनकी हिस्सेदारी को बढ़ाना है जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े रहे हैं। यह गरीबी उन्मूलन नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व बढ़ाने का उपक्रम है। जैसे रक्षा और विदेश नीति के मामले में सभी राजनैतिक दल एकमत होते हैं, आरक्षण के सवाल पर भी उन्हें एक राय बनानी चाहिए। जाति के आधार पर तुष्टिकरण के परिणाम अबतक नकारात्मक रहे हैं
उत्तर-प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के हाथ मिलाने की खबर आ रही है। वहीं कांग्रेस से दूरी बनाए रखने की भी बात सामने आ रही है। आखिर क्या वजह है कि सपा-बसपा नहीं चाहती कि कांग्रेस उनके गठबंधन में शामिल हो
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
आगामी 9 दिसंबर 2018 को शिवपाल यादव और वामन मेश्राम ने संयुक्त रूप से लखनऊ में महारैली का आह्वान किया है। इसके लिए जोर-शोर से तैयारियां की जा रही हैं। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Two options are available to the OBCs. One, to join hands with the deprived Dalit-Tribals and become a co-partner in the intellectual and ideological battle for bringing about social justice and change in India. Two, to bow to the pressure from the Manuwadi-brahmanical community, follow in its footsteps and fulfil its political-economic agenda by patronizing status quoist and feudal values.
ओबीसी के सामने दो रास्ते हैं। पहला, समाज के वंचित दलित-आदिवासी समूहों के साथ बेहतर सामंजस्य व समता का माहौल तैयार करते हुए भारत में व्यवस्था परिवर्त्तन में भूमिका निभाना। दूसरा, सामाजिक-राजनीतिक द्वंद्व के बीच दवाब के कारण मनुवादी-ब्राह्मणवादी समाज का पिछलग्गू बन तात्कालीक राजनीतिक-आर्थिक हित साधना
Rihai Manch spokesperson Rajeev Yadav says that a day after the murder of Maulana Khalid Mujahid in police custody on 18 May 2013, the chief minister issued a statement declaring that his death was natural. How could the CM possibly know that the death was natural when he had not even seen the post-mortem report?
रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव का कहना है कि 18 मई, 2013 को मौलाना खालिद मुजाहिद की पुलिस अभिरक्षा में हत्या के दूसरे दिन ही प्रदेश के मुख्यमंत्री का बगैर किसी आधार के बयान आ गया कि मौत स्वाभाविक है। राजीव प्रश्न करते हैं कि आखिर मुख्यमंत्री ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखे बगैर ही कैसे जान लिया कि मौत स्वाभाविक है?