प्रेमचंद और रेणु अपने संपूर्ण साहित्य में सबसे रूबरू होते हैं। रेणु का पूरा साहित्य समाज की जीवन स्थितियों, उसकी समस्याओं व सामयिक हलचल को उद्घाटित एवं संबोधित करता है। प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में सत्य का उद्घाटन करना शुरू किया था जिसे हम “सामाजिक यथार्थवाद” कहते हैं। रेणु समाजवादी थे, लेकिन उन्होंने अपने साहित्य को समाजवादी सिद्धांतों पर नहीं गढ़ा। प्रो. सुरेंद्र नारायण यादव से विशेष बातचीत