लोकसभा चुनाव में अब केवल कुछ ही महीने का फासला है। फिल्मों के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। सवाल उठता है कि ये प्रयास कितने जनपक्षीय हैं। एक सवाल यह भी है कि एक का नकारात्मक चित्रण कर खुद को श्रेष्ठ साबित करने की यह होड़ भविष्य में कौन सा रूप अख्तियार करेगी