समाज में व्याप्त जड़ताओं को दूर करने वाली पत्र-पत्रिकाओं को यूजीसी द्वारा सूची से बाहर निकाले जाने का बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। प्राख्यात साहित्यकार गिरिराज किशोर का कहना है कि यूजीसी ने उच्च शिक्षा को भटकाव के दोराहे पर खड़ा कर दिया है। जबकि प्रो. सतीश देशपांडे कहते हैं कि ईपीडब्ल्यू, फारवर्ड प्रेस और हंस जैसी पत्रिकाओं को यूजीसी जैसी संस्था की परवाह नहीं करनी चाहिए