दूसरे दिन हम सब झूंसी के जी. बी. पंत समाज वैज्ञानिक संस्थान के सभागार में एकत्र हुए और उस ‘दलित-वाम-संवाद’ के साक्षी बने, जो इस तरह का भारत का पहला इवेंट था। फिर उस तरह का इवेंट कभी नहीं हुआ। उस ऐतिहासिक महासंवाद का श्रेय निश्चित रूप से विभूति जी को जाता है। पढ़ें, प्रसिद्ध साहित्यकार विभूतिनारायण राय से संबंधित कंवल भारती का संस्मरण