समय आ गया है कि केन्द्रीय स्तर पर वंचित समूहों के लिए अलग साहित्य, संगीत और नाट्य अकादमियों की स्थापना की जाए ताकि वंचित समूह भी अपनी कला संस्कृति को परजीवी समुदाय की कला, साहित्य और संस्कृति के समानांतर स्थापित कर सकें। बता रहे हैं कर्मानंद आर्य
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डॉ. रामविलास शर्मा के विचारों को विस्तार देते हुए कंवल भारती मानते हैं कि भारत में यदि फासिस्ट तानाशाही कायम होती है, तो इसकी एकमात्र जिम्मेदारी, कम्युनिस्ट पार्टी में मौजूद, ऊंची जाति पर होगी, और ऊंची जाति में भी सबसे ज्यादा ब्राह्मण वर्ग पर
बांग्ला दलित साहित्य मानवता का साहित्य होगा। कहीं पर भी किसी दलित लेखक को देवता नहीं बनाया जाएगा और ना ही किसी को अपमानित किया जाएगा। वह जो है, जिस ढंग से है, उसे उसी रूप से दिखाया जाएगा। हम नया साहित्य रचेंगे। बांग्ला दलित साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष मनोरंजन ब्यपारी से खास बातचीत
‘Bangla Dalit literature will be a literature of humanity. We won’t have any gods and we won’t demean anybody. Everyone will be presented just as they are. We will create a new literature.’ Manorajan Byapari, chairman, Bangla Dalit Sahitya Academy, in conversation with Kartik Choudhary
इसको ऐसे भी समझिए कि अभी तक पश्चिम बंगाल में तो यह माना जाता रहा कि दलितों का कोई साहित्य है ही नहीं। लंबी लड़ाई के बाद वे यह स्वीकार करने लगे हैं कि शोषितों और वंचितों का भी साहित्य है। इसलिए मेरे हिसाब से यह एक बड़ी कामयाबी है दलित वर्गों की। फारवर्ड प्रेस के हिन्दी संपादक नवल किशोर कुमार से बातचीत में पश्चिम बंगाल में नवगठित दलित साहित्य अकादमी के अध्यक्ष मनोरंजन ब्यापारी
सवाल यही है कि पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिक केवल आदिवासी होने के कारण उपेक्षा के शिकार हैं? उनकी दयनीय हालत व सरकार के दावों की पड़ताल कर रहे हैं राजन कुमार
दलित-बहुजनों के आदर्शों, पुरखों को सांस्कृतिक आयोजनों के बहाने सरेआम बेइज्जत किया जाता रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है असुर सम्राट महिषासुर का दुर्गा पूजा के अवसर पर वध प्रदर्शित करना, जिसके खिलाफ अब व्यापक पैमाने पर होने लगी है मुखालफत। बता रहे हैं उज्ज्वल विश्वास :
The ideals and ancestral traditions of the Dalitbahujan have been perpetually insulted in the garb of cultural and religious events. The prime example is the gory display of the slaughter of Asur king Mahishasur on the occasion of Durga Puja, which is now being challenged openly and vehemently, writes Ujjwal Vishwas
दुर्गा की मूर्ति के लिए मिट्टी इस बार भी नहीं देंगी सोनागाछी की यौनकर्मी सदियों से औरतों के जिस्म बेचने के धंधे से फल-फूल रहा मर्दवादियों-ब्राह्मणवादियों को यह समाज दुर्गा के नाम पर यौनकर्मियों के घरों की मिट्टी भी बाजार में बेचता रहा है। देवताओं के बाजार में यह धंधा तब भी शुरू है जबकि यौनकर्मी अपने आंगन की मिट्टी देवी दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए देने को तैयार नहीं हैं…
The sex workers of Sonagachi refused to give soil for the idol of Durga again this year. The flourishing patriarchal, brahmanical society which has traded the body of women for centuries has also sold the mud from their houses, but now sex workers say enough is enough. Prema Negi reports
कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है। उस फैसले पर जिसके तहत सरकार द्वारा दुर्गापूजा आयोजन समितियों को दस-दस हजार रुपए अनुदान दिया जाना है। फिलहाल हाईकोर्ट ने सरकार को रूकने के लिए कहा है। फारवर्ड प्रेस की खबर
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
पश्चिम बंगाल में महिषासुर दिवस के आयोजन दलित-बहुजनों को सशक्त कर रहे है, एक रिपोर्ट
Mahishasur Day events in West Bengal are uniting and empowering Dalitbahujans