उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीते 25 नवंबर को मान्यता प्राप्त अशासकीय कॉलेजों में मानदेय पर कार्यरत 700 से अधिक सहायक प्रोफेसरों को नियमित करने और नियुक्ति पत्र देने के कार्यक्रम को टाल दिया है। इससे पहले सरकार के इस निर्णय पर विरोध जताया जा रहा था कि सरकार आरक्षण को दरकिनार कर ऐसा करने जा रही है। फारवर्ड प्रेस की खबर :
Forward Press also publishes books on Bahujan issues. Forward Press books shed light on the widespread problems as well as the finer aspects of Bahujan (Dalit, OBC, Adivasi, Nomadic, Pasmanda) society, culture, literature and politics
‘द ग्रेट चमार’ नारे के जरिए दलित-बहुजन युवाओं को नया राजनीतिक आयाम देने वाले भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण को छोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार आखिरकार मजबूर हो ही गयी। लेकिन इससे क्या वह दलित-बहुजनों के आक्रोश-असंतोष को शांत कर पायेगी। सवाल यह भी कि दलित राजनीति की दिशा क्या हाेगी। सिद्धार्थ का विश्लेषण :
आदिवासी चाहे बस्तर के जंगलों में रहने वाले हों या फिर गंगा के मैदानी भाग में, उनका दमन जारी है। जल, जंगल और जमीन से जबरन दूर किये जा रहे आदिवासियों के विरोध को दबाने का पुलिसिया तरीका भी एक समान है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को किस तरह झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है, बता रहे हैं पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस. आर. दारापुरी
The Adivasis may be in the forests of Bastar or in the plains of the Ganges, but there is little difference in the manner the police suppress their protests against destruction of their livelihoods. In eastern Uttar Pradesh, Adivasis are being named in false cases, writes former IGP S.R. Darapuri