अपनी सभी सभाओं में दिलीप कुमार जोर देकर कहा करते थे कि पसमांदाओं के मामले में आरक्षण को धर्म से न जोड़ते हुए उसे सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े एक समुदाय की बेहतरी के लिए सामाजिक उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। बता रहे हैं अभिजीत आनंद
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